yhoba ki dya
Chapter 1
1 क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो दुष्टों की योजना पर* नहीं चलता,
और न पापियों के मार्ग में खड़ा होता;
और न ठट्ठा करनेवालों की मण्डली में बैठता है!
2 परन्तु वह तो यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्न रहता;
और उसकी व्यवस्था पर रात-दिन ध्यान करता रहता है।
3 वह उस वृक्ष के समान है, जो बहती पानी की धाराओं के किनारे लगाया गया है*
और अपनी ऋतु में फलता है,
और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं।
और जो कुछ वह पुरुष करे वह सफल होता है।
4 दुष्ट लोग ऐसे नहीं होते,
वे उस भूसी के समान होते हैं, जो पवन से उड़ाई जाती है।
5 इस कारण दुष्ट लोग अदालत में स्थिर न रह सकेंगे,
और न पापी धर्मियों की मण्डली में ठहरेंगे;
6 क्योंकि यहोवा धर्मियों का मार्ग जानता है,
परन्तु दुष्टों का मार्ग नाश हो जाएगा।
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